मन की अशांती

                   श्री  राम  जय बाला जी ,

                                              आज जिधर देखो हर आदमी दुखी या परेशान दिखता है। किसी को पैसा का तो किसी को पैसा है , पर घर का , किसी को औलाद का किसी को बीमारी का इस प्रकार कोई न कोई कारण परेशान करते रहते है ।  कोई  नशा कर के , कोई बाहर  घूम फिर कर , कोई धार्मिक जगह पर जाकर मन का चैन ढूढ़ते है पर मिलता है तो सिर्फ कुछ घंटे के लिए बाद में फिर चिंता और अशांति।  इसका कारण इंसान खुद ही है और वह कारण बाहर ढूढ़ता है इसीलिए उसे हल नहीं मिलता।                                                                   सर्वशक्तिमान परमात्मा ने इंसान को बनाया पर इंसान उस  बनाने  वाली शक्ति को ही भूल कर जो कि इंसान के असली माता ,पिता  सगे है ,आधुनिकता की जिंदगी जीने लगा। थोड़े से पैसे कमाने के लिए अपनी आत्मा को मारने लगा ,कई लोग तो आजकल धार्मिक सम्मेलन और सत्संग में इसीलिए जाते है कि वहां पर घंटा भर जाने से सम्बन्ध गूढ़ होगे लोग आपको ज्यादा से ज्यादा जानने लगेंगे कि वह तो फलाना इंसान है उसकी वहां पर दुकान है अपना गुरु भाई ही है , उसी से खरीददारी कर लगे। आजकल भगवान के नाम पर लोगो ने दुकानदारी बना रखी है ,इसीलिए भगवान भी ऐसे इंसानो की तरफ कृपा दृष्टि नहीं रखते ऐसे इंसानो को कही भी चैन नहीं मिलता।

                                                भगवान का प्यारा वही है जो निष्काम उसका मनन करता है दूसरों की सेवा  करता है। उसके मन में शान्ति है जो धन जोड़ने में विश्वास नहीं रखता पर भगवान भी ऐसे भक्तो को दिए बिना नहीं रहते । हमेशा उनका ध्यान बच्चों की तरह रखते है जो इंसान उसकी मर्जी में रहता है वह ही मौज करता है जो अपनी औलाद के लिए या अपने स्वार्थ के लिए गलत पैसा कमाते है वह पैसे ही कभी ना कभी उनके दुखो का कारण बनते है। 

                                               इंसान सारी उम्र पैसे के पीछे भागता है सिर्फ 60 -70 साल की छोटी सी उम्र में और मरते वक़्त कुछ पल के लिए उसे ध्यान आता है कि ये मैंने क्या किया जिस ईश्वर ने मुझे यहाँ भेजा ,  उसे तो कभी वक़्त नहीं दिया और आज उसके पास जा रहा हूँ मेरा वहां क्या होगा ? वो बोल नहीं पाता सिर्फ सोच कर कुछ पल के लिए पछताता है कि सारी उम्र सकून भी नहीं मिला और परमात्मा का प्यार भी ना  पा सका । इंसान दुनिया के काम के लिए जितना भागता है उतना ही परेशान और अशांत रहता है । उतना ही दिन ब दिन उसका मन बेचैन रहने लगता है और उसकी दुनिया की चीजों को पाने की भूख़ बढ़ती जाती है जिससे उसकी अशांति बढ़ जाती है अशांति बढ़ जाने से नींद कम आने लगती है , चिड़चिड़ा पन बढ़ जाता है साथ ही दुःख बढ़ने लगते है लेकिन वास्तव में उसे मिलता उतना ही है , जो भगवान की मर्जी होती है ,कई बार इंसान गलत ढंग से किसी से ठगी करकर या चोरी आदि करकर पैसे तो कमा लेता है लेकिन वह भगवान का दिया प्रशाद नहीं होता । वो तो कलयुग की माया होती है जो बाद में ढेर सारे खेल भी दिखाती है ,अगर इंसान 24 घंटो में से सिर्फ एक घंटा भी उस परमात्मा  के लिए जहां भी वो बैठा है चाहे घर पर ही निकाले तो उसे परमात्मा का प्यार शान्ति रूप अन्दर ही प्राप्त हो जायेगा फिर बाहर की चीजों में शान्ति नहीं ढूंढेगा। इतिहास में जितने भी महान ऋषि मुनि , भगत हुए सब साधारण जीवन जीते थे । जबकि अगर वो कहते तो लोग और राजा तक सब उन्हें हर सुुुख - सुविधा देने को तैयार थे , लेकिन उनको पता था अगर वह दुनिया के सुुुुखो में चले गए तो वह उन्हीं में खो जायेगे । उनका मन और सुुुख के पीछे भागेगा और अशांत रहेगा । मन अशांत हुआ तो वो प्रभु भक्ति नहीं कर पाएंगे इसीलिए उन्होंने सादा जीवन और जो प्रभु इच्छा से मिल जाता वह गृहण किया। 

                                               अगर आपको शांत जीवन और बीमारियों से रहित जीवन चाहिए तो प्रभु इच्छा में जीने की आदत डालिए क्योंकि कुछ सालो बाद आपने अपने असली घर वही चले जाना है। भटकने की बजाए अपने  घर में ही सुखद वातावरण बनाए और भगवान् का ध्यान लगाए भगवान  कोई ख़ास जगह नहीं है , जहां उसका सच्चा भक्त है वो वही है । अगर आप दूसरों को सुख प्रदान करेंगे तो आपको अपने अंदर ख़ुशी प्राप्त  होगी और भगवान् की नजर भी आप पर जायेगी तब खुद ही आपका मन शांत रहेगा।                                                                                                                                         

 देखता था मैं जहाँ , ना थी वहाँ  बहार 

जब देखा अंदर अपने ,तो हर कण कण              में था उसका ही दीदार। 

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