दान क्या है ?

                  जय श्री राम जय बाला जी,

                                       आजकल लोग जिस गति से पाप करते है, उस गति से दान करने को भी उत्सुक रहते है, ताकि उनके पाप कर्म में कमी हो।  ज्यादातर दान करने वाले अपने नाम के साथ दान करते है तांकि उनकी तारीफ़ हो और लोगो को पता चले कि यह इंसान बहुत अच्छा है चाहे वो अंदर से बुरा ही क्यों न हो। 
                                        लोगो को दिखाकर दिया दान या अपना नाम लगाकर दिए दान से परमात्मा कभी खुश नहीं होते।  कई ऐसे लोग भी है जो सुखी और सम्पन होते हुए भी अपने आस-पास अगर कोई गरीब है या कोई बीमार है,कोई जरूरतमंद है , उसकी मदद नहीं करते क्योंकि उनकी नजर में वो जरूरतमंद उनका अच्छा पडोसी नहीं या अच्छा रिश्तेदार नहीं इसलिए मदद करना जरूरी नहीं समझते ।
 हां अगर कोई धार्मिक संस्थान या कोई गुरु शरीर दान के लिए कहे वह फार्म जरूर भर देते है उसे नाम देते है शरीर दान या अंग दान। 
                                        जो चीज परमात्मा ने जीव आत्मा को रहने के लिए दी है जो शरीर भी आपका नहीं है  परमात्मा की देन है उसे आप अपना समझ कर कैसे दान कहते है ? क्या परमात्मा उससे खुश होता है ? शायद नहीं , जो शरीर सारी उम्र दूसरों का दुःख देखते हुए भी अपनी आँखे बंद रखता है , सबकुछ होते हुए भी जो हाथ किसी की मदद के लिए नहीं उठते  बल्कि मुठी बंद करके पैसा जोड़ना जानते हो, जो मुंह दूसरों की बुराई के लिए खुलता हो , जो दांत , जीव्हा  स्वाद के बुरे प्रभावों से ग्रस्त हो , क्या मरने के बाद वह दान जो आपका नहीं है , देने से परमपिता परमात्मा खुश हो गए ? आपके सारे पाप मुक्त हो गए ? जब आत्मा शरीर से निकलती है तो शरीर से उसका साथ तब ही छूट जाता है उसी वक़्त वह शरीर आपका नहीं रहता फिर चाहे उसे चील, कौए खाये या जलाया जाये या किसी और के काम आये। भगवान् ने जो चीज आत्मा को दी है वह है शरीर।  हाथ दिए अगर आप सक्षम है तो दूसरों की भी मदद करो , आँखे दी किसी का दर्द देखो तो देखते मत रहो , जो पुण्यकर्म आप शरीर में रहकर कमा रहे है , या बिना फल की इच्छा  के दान कर रहे है वह ही दान है ।
वो ही प्रभु का प्यारा है वो दान ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है , वो दान ही लगता है।  महाभारत में कर्ण ने अपने कुंडल एवं कवच बिना एक पल सोचे दान किये जबकि उसे पता था की उसकी जान को खतरा हो सकता है।  दान वो नहीं जो आप सोचसमझकर देते है ,आपके आस-पास या कोई गरीब आपके पास काम काम करता है , तो धार्मिक जगह या सत्संग पर जाने की बजाए किसी की जरूरत पूरी करे तो ही परमात्मा आपको मिलेगा नहीं तो मरने के बाद भी नहीं। जब सत्संग जाने की बजाए वह समय  आप किसी गरीब के घर जाकर उसका दुःख दूर करने में लगाएंगे तो ज्ञान आपको स्वय प्राप्त होगा कही जाकर लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. 

      हवन करा , सत्संग जा , ना  मिलेगे भगवान् 

 किसी दुखी की मदद कर, तुझे वहीं  मिले भगवान 

वो ही तेरा सत्संग ,वो ही तेरा नाम ,वो ही तेरा तीर्थ                वो ही तेरा दान , वो ही तेरा दान

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