भरोसा तेरा क्यूँ नहीं ।
बीच भंवर कब छोड़ दे ,
कब अपनों से नाता तोड़ दे ।
वफा तुझमें क्यूँ नहीं ,
क्यूँ तुझमें है दिल नहीं ।
सबको तूँ रुलाती हैं ,
फिर भीं सबको तू भाती है।
कुछ तो बता ऐ जिंदगी ,
भरोसा तेरा क्यूँ नहीं ।
गले से बांहे निकाल के ,
इक दिन धोखा दे जाती है ,
हंसते - खिलते चमन को भी,
तूं श्मशान बनाती है।
कुछ तो बता ऐ जिंदगी ,
भरोसा तेरा क्यूँ नहीं ।
तुझसे भली तो मौत है ,
सच्ची सबकी दोस्त है ।
जब छोड़ तूँ चली जाती है
तब मौत ही आ अपनाती है ।
कुछ तो बता ऐ जिंदगी ,
भरोसा तेरा क्यूँ नहीं ।
संजीव कुक्कड़

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