बीच भंवर यही आस लगाये ,
शायद कोई तो उसे आन बचायें ।
पंखो से भी उड़ ना पाये ,
पल पल जल में डूबा जाये
फिर भीं तिनके की आस लगाये ।
आये सभी जल पीने को
देखा भी उस पंछी को ,
पर कौन अपना समय गंवाये ।
डूब रहा था इक पंछी
बीच भंवर यही आस लगाये ,
शायद कोई तो उसे आन बचायें ।
पागल पंछी टिक -टिक देखे
शायद वो बच ही जायें ।
बड़े जल में हाथ चलायें ,
फिर भीं अंदर डूबा जाये ।
थक ही गया आखिर में वो ,
अब ना थे उसने हाथ चलाये ।
डूबा जल में सपने सजाये ,
नैना थे उसके पथराये ।
डूब रहा था इक पंछी
बीच भंवर यही आस लगाये ,
शायद कोई तो उसे आन बचायें ।
संजीव कुक्कड़

0 टिप्पणियाँ
हम अपनी तरफ से अच्छें लेखन का प्रयास करते हैं , आप अपनें कीमती सुझाव हमें कमेंट में जरूर बतायें , तांकि हमारा लेखन कार्य और भी निखर सकें । हम अपने ब्लाग में आपको नयी रेसिपी , हिन्दी निबंध , नयी कविताएँ और धर्म के बारे में लेखन के साथ अन्य जानकारियों पर भी लेखन कार्य बढ़ा रहे हैं । आपका सहयोग हमारे लिए बहुत अनिवार्य हैं जिससे हम आगे का सफ़र तय कर पायेगें ।
धन्यावाद
कुक्कड़ वर्ल्डस