पंछी


डूब रहा था इक पंछी
बीच भंवर यही आस लगाये ,
शायद कोई तो उसे आन बचायें ।
पंखो से भी उड़ ना पाये ,
पल पल जल में डूबा जाये
फिर भीं तिनके की आस लगाये ।
आये सभी जल पीने को
देखा भी उस पंछी को ,
पर कौन अपना समय गंवाये ।
डूब रहा था इक पंछी
बीच भंवर यही आस लगाये ,
शायद कोई तो उसे आन बचायें ।
पागल पंछी टिक -टिक देखे
शायद वो बच ही जायें ।
बड़े जल में हाथ चलायें ,
फिर भीं अंदर डूबा जाये ।
थक ही गया आखिर में वो ,
अब ना थे उसने हाथ चलाये ।
डूबा जल में सपने सजाये ,
नैना थे उसके पथराये ।
डूब रहा था इक पंछी
बीच भंवर यही आस लगाये ,
शायद कोई तो उसे आन बचायें ।
संजीव कुक्कड़







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