चमकते थे आंखो के तारे ।
खिलेगें बगिया में फूल ,
सपने सजाते आंखो के तारे ।
एक दिन जरूर जीतेगे हम,
हमेशा मुस्कराते आंखो के तारे।
हर ठोकर पर गिर कर ,
फिर दमक जाते आंखो के तारे ।
चलते - दौड़ते आखिर ,
थक ही गये आंखो के तारे ।
गिरकर देखनें लगे आसमान ,
थोड़ा चमक कर मुस्कायें
और धूमिल पड गये
आंखो के तारें ।
संजीव कुक्कड़

1 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी पक्तिया
जवाब देंहटाएंहम अपनी तरफ से अच्छें लेखन का प्रयास करते हैं , आप अपनें कीमती सुझाव हमें कमेंट में जरूर बतायें , तांकि हमारा लेखन कार्य और भी निखर सकें । हम अपने ब्लाग में आपको नयी रेसिपी , हिन्दी निबंध , नयी कविताएँ और धर्म के बारे में लेखन के साथ अन्य जानकारियों पर भी लेखन कार्य बढ़ा रहे हैं । आपका सहयोग हमारे लिए बहुत अनिवार्य हैं जिससे हम आगे का सफ़र तय कर पायेगें ।
धन्यावाद
कुक्कड़ वर्ल्डस