एक दिन यूँ ही बैठा था , कब्रिस्तान में,
सोच रहा था मायने मुस्कान के ।
तभी क्रब से आवाज़ आई ,
" मैं भीं कभी जिन्दा था ,
उड़ता हुआ परिंदा था । "
अपनी खुशी के लिए ,
दूसरों को रुलाता था ।
उनके आसूओं से मैं ,
झूठी मुस्कान पाता था ।
फिर भीं सकून कहीं ना था ,
अंदर से फिर भीं रहा खाली ।
बाहर से थे उजले वस्त्र ,
अंदर से थी बदहाली ।
उम्र बीती बुलावा आया ,
सामने मौत को खड़ा पाया ।
तभीं डरा और घबराया ,
अच्छे कर्म करने का ख्याल आया ।
पर छीनी हुई दूसरों की मुस्कान ,
कभीं लौटा ना पाया , कभीं लौटा ना पाया ।
सुना कर अपनी कहानी ,
आवाज़ आनी बंद हो गई ।
थोड़ी ही सही ,पर सच्ची थी
औरों से ना छीनी हुई , अधरों पे सिर्फ
अपनी मुस्कान लिए हुए ,
सिर्फ अपनी मुस्कान लिए हुए ।
संजीव कुक्कड़
7 टिप्पणियाँ
Nice post 👍
जवाब देंहटाएंThx You are First who Like My post
हटाएंThx So Much
जवाब देंहटाएं👌👌💯💯very nice
जवाब देंहटाएंThx Soooo much 😊
हटाएंVry nice
जवाब देंहटाएंThx Soooo much 😊
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कुक्कड़ वर्ल्डस