ना अहसास ऐ दर्द , ना कसक बाकी ।
अन्जान चेहरें हैं , याद कुछ भी नहीं
हैं घना कोहरा , बाद कुछ भीं नहीं ।
पंगडडी हैं बिखरी सी ,
गिरने को बेताब हैं
फूल हैं इक , कांटे बेहिसाब हैं ।
कश्ती हैं , मांझी है पर पतवार नहीं ,
उलझे हुए सवाल हैं , पर जवाब नहीं ।
ना रास्ता ना ही सफ़र बाकी ,
ना अहसास ऐ दर्द , ना कसक बाकी ।
सिसकियां भी बेदम हैं ,
उनमें अब जान नहीं
दिल तो वो ही हैं ,
लेकिन उनमें अब अरमान नही ।
कर के सज़दा इस जहाँ को निकल जाऊंगा ,
मैं वो बादल हूँ , गुजरा तो फिर ना आऊंगा ।
शोर अंदर से , बाहर से हैं खामोशी बाकी
ना अहसास ऐ दर्द , ना कसक बाकी ।
ना अहसास ऐ दर्द , ना कसक बाकी ।
संजीव कुक्कड़

1 टिप्पणियाँ
Nice
जवाब देंहटाएंहम अपनी तरफ से अच्छें लेखन का प्रयास करते हैं , आप अपनें कीमती सुझाव हमें कमेंट में जरूर बतायें , तांकि हमारा लेखन कार्य और भी निखर सकें । हम अपने ब्लाग में आपको नयी रेसिपी , हिन्दी निबंध , नयी कविताएँ और धर्म के बारे में लेखन के साथ अन्य जानकारियों पर भी लेखन कार्य बढ़ा रहे हैं । आपका सहयोग हमारे लिए बहुत अनिवार्य हैं जिससे हम आगे का सफ़र तय कर पायेगें ।
धन्यावाद
कुक्कड़ वर्ल्डस