कुछ तहरीरें मिटा नहीं करती ,
जिंदगी भर रुलाती हैं ।
महफिल हो कितनी भी रौशन ,
स्याह बन कर सताती हैं ।
भीड़ हो चाहे लाख सही ,
फिर भी अकेला कर जाती हैं ।
सूरज़ की रौशनी लगती फीकी सी ,
चाँदनी भीं डराती हैं ।
कुछ तहरीरें मिटा नहीं करती ,
जिंदगी भर रुलाती हैं ।
फूलों में भी चुभन का ,
अहसास कराती हैं ।
सांसे तकलीफ़ हैं देती ,
जिंदगी जख्म बन जाती हैं ।
टूटती सांसो के संग ही ,
आखिर यह भी टूट जाती हैं ।
कुछ तहरीरें मिटा नहीं करती ,
जिंदगी भर रुलाती हैं ।
संजीव कुक्कड़

2 टिप्पणियाँ
Nice lines 👌
जवाब देंहटाएंNice lines 👍 super
जवाब देंहटाएंहम अपनी तरफ से अच्छें लेखन का प्रयास करते हैं , आप अपनें कीमती सुझाव हमें कमेंट में जरूर बतायें , तांकि हमारा लेखन कार्य और भी निखर सकें । हम अपने ब्लाग में आपको नयी रेसिपी , हिन्दी निबंध , नयी कविताएँ और धर्म के बारे में लेखन के साथ अन्य जानकारियों पर भी लेखन कार्य बढ़ा रहे हैं । आपका सहयोग हमारे लिए बहुत अनिवार्य हैं जिससे हम आगे का सफ़र तय कर पायेगें ।
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कुक्कड़ वर्ल्डस