सांसे घुटती रही , कर्जा बढ़ता गया
हर पल दलदल में वो धंसता गया ।
समय चाल चलता गया ,
वो भी तेज़ी से ढलता गया ।
कभीं रातों में उठता ,
कभीं खुद पे ही हंसता गया ।
रस्ता खत्म था आगे ,
फिर भी पागल चलता गया ।
हर पल दलदल में वो धंसता गया ।
चक्की चलती रहीं ,
और वो पीसता गया ।
टहलते कदमों में हमेशा बेचैनी सी ,
उफान सा सीने में अटकता गया ।
हर आहट से वो ड़रता गया ,
हर पल दलदल में वो धंसता गया ।
ना कोई अपना था यहाँ ,
बेगानी दुनिया में वो सफ़र करता गया ।
सड़क पर ठोकर खाकर ,
पल दो पल आह निकली
फिर कोई अजनबी कफन से ,
उसका चेहरा ढ़कता गया ।
हर पल दलदल में वो धंसता गया ,
हर पल दलदल में वो धंसता गया ।
संजीव कुक्कड़

7 टिप्पणियाँ
💯💯💯💯💯😍
जवाब देंहटाएंThx Soooo much😊
हटाएंHeart touching lines 👌
जवाब देंहटाएंThx Soooo much 😊
हटाएंThx Soooo much
जवाब देंहटाएंThx Soooo much 😊
जवाब देंहटाएंSo Nice wordings of real life
जवाब देंहटाएंहम अपनी तरफ से अच्छें लेखन का प्रयास करते हैं , आप अपनें कीमती सुझाव हमें कमेंट में जरूर बतायें , तांकि हमारा लेखन कार्य और भी निखर सकें । हम अपने ब्लाग में आपको नयी रेसिपी , हिन्दी निबंध , नयी कविताएँ और धर्म के बारे में लेखन के साथ अन्य जानकारियों पर भी लेखन कार्य बढ़ा रहे हैं । आपका सहयोग हमारे लिए बहुत अनिवार्य हैं जिससे हम आगे का सफ़र तय कर पायेगें ।
धन्यावाद
कुक्कड़ वर्ल्डस